Friday, November 12, 2010

पहेली बनके तुम ऐसी आती हो सामने,
पकड़ ना पाउ तुम्हे,
जुलफोमें ऐसे सिमट जाते हो हलके,
छुड़ा ना पाउ तुम्हे,

वादा किया था मैंने मुझसे
भूलजाने का तुम्हे
फिर क्यों मिलता रहता हु तुम्हे
तितलीयोंके रंगों में

बारिश की बूंदोंमें नजर आती है
तुम्हारी मुसकान सदा
सास में मेरे तुम्ही तुम हो बसे,
कैसे निकालू तुम्हे?

इतफाक से अगर मिल जाओ कभी तो
बोल नहीं पाऊंगा
बस देखता रहूंगा तुम्हे देर तक
मेरे दिल की आखोंसे

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